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लेखनी कहानी -31-Dec-2022 तीये की बैठक

संसार असार है । यह बात तब पता चलती है जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति इस दुनिया से अचानक चला जाता है और उसका समस्त "प्रभाव" धरा का धरा रह जाता है । तब ना दौलत काम आती है, ना प्रतिष्ठा और ना ही रसूख । जब राम का बुलावा आ जाता है तो मनुष्य को जाना ही पड़ता है । इस आने और जाने में भी कितनी ही चीजें हैं जो करनी पड़ती हैं । जैसे अंतिम संस्कार, तीये की बैठक और रस्म पगड़ी । चलिए, आज तीये की बैठक पर बात करते हैं । 

शीतकालीन छुट्टियों में हम ससुराल चले गये थे । ससुराल जाना एक तीर्थ यात्रा जैसा होता है । घर बैठे ही पुण्य मिल जाते हैं । एक दिन हम ससुराल में बैठे बैठे मूंगफली छील रहे थे कि मोबाइल ने अपना ध्यान आकृष्ट कर लिया । एक पड़ोसी का फोन था । बता रहे थे कि "दूसरे पड़ोसी लाला छदामी लाल जी की पुत्रवधू का आकस्मिक निधन हो गया है । कल उठावणा है और परसों तीये की बैठक है । जब चाहो तब आ जाना" । ये एक महत्वपूर्ण समाचार था इसलिए तुरंत हाई कमान को सुनाना पड़ा । इस समाचार को सुनकर वे एकदम से बोलीं "हाय राम ! अभी तो उमर ही क्या थी बेचारी की । 35 साल में भी दिल का दौरा पड़ जाता है क्या" ? अब उनको कैसे बताता कि दिल का दौरा उम्र देखकर नहीं पड़ता है बल्कि दिल को बहुत अधिक काम में लेने से पड़ता है । लोग बेचारे दिल पर इतना बोझ डाल देते हैं कि वह बीच रास्ते में ही टें बोल जाता है । आखिर दिल का क्या कसूर" ? 

आजकल तो चिकित्सा विज्ञान इतना उन्नत, विकसित और समृद्ध हो गया है कि कैंसर जैसी बीमारी का इलाज भी संभव है फिर ये दिल का दौरा ? और वह भी 30-40 की उम्र में ? लगता है कि दिल चिकित्सा विज्ञान के काबू में नहीं आ रहा है । वैसे एक बात बतायें, दिल तो किसी के भी काबू में नहीं आता है । जब जहां चाहे, बेकाबू हो जाता है । ना उम्र का लिहाज और ना घर गृहस्थी का । यहां तक कि बुढापे में भी दिल "पगला" जाता है । तभी तो आजकल परिवार टूटते जा रहे हैं और अपराध बढते जा रहे हैं ।

अधिकांश डॉक्टर भी "दिल के मरीज" ही निकलते हैं । कोई क्या कर लेगा ? दिल के हाथों सब मजबूर हैं । जिसने भी इस सत्य को समझ लिया उसने दिलफेंक लोगों से बचने का जुगाड़ कर लिया । तभी तो लोग फालतू लोगों को अपने घर में फटकने भी नहीं देते हैं । लाला छदामीलाल भी ऐसे ही हैं । हमारी उनकी बातचीत जब भी हुई है, घर के बाहर ही हुई है । वो तो जब अग्रवाल समाज के अध्यक्ष के चुनाव हुये थे और वे इसके लिए लड़ रहे थे तब उन्हें हमारा भी एक वोट चाहिए था इसलिए उन्होंने हमें एक दिन खाने पे बुला लिया था वरना वे किसी को नहीं पूछते हैं । पर पड़ोसी धर्म भी कोई चीज है । अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाए तो कोई बात नहीं , तीये की बैठक तो है अभी । 

हम लोग वापस अपने घर आ गये । आते ही अखबार खोला तो पूरे एक पेज पर लाला छदामीलाल जी की पुत्रवधू के तीये की बैठक की सूचना उसके फोटो के साथ थी । फोटो के नीचे उनके सभी प्रतिष्ठानों के नाम लिखे थे । मैंने सोचा कि यह विज्ञापन कम से कम एक लाख का तो होगा । पर सेठ जी के लिए क्या मायने रखता है ? वैसे अग्रवाल समाज में एक धेला भी नहीं देते हैं वे । यही खासियत है उनकी । वे पक्के व्यापारी हैं और व्यापारी लोग कम कलाकार नहीं होते हैं । तीये की बैठक को भी अपनी कंपनी के प्रचार का हथियार बना लेते हैं जैसे छदामीलाल जी ने बनाया था । 

लाला छदामीलाल जी से कोई खास परिचय नहीं था । पड़ोस में रहते हैं तो कभी कभार आते जाते राम राम हो जाती है । बस, इससे ज्यादा नहीं । नामी गिरामी सेठ हैं इसलिए नौकर चाकरों की फौज है उनके घर में । अफसरों में केवल आयकर विभाग के अफसरों से ही ताल्लुक रखते हैं बाकी को टका सेर भाव नहीं देते हैं । मैंने देखा है कि आयकर विभाग का अगर इंस्पेक्टर भी उनके घर आ जाये तो उसे लेने और छोड़ने वे स्वयं गाड़ी तक आते हैं नहीं तो बहुत सारे लोग आते जाते रहते हैं रोजाना । 

ठीक तीन बजे हम तीये की बैठक के लिए निकल पड़े । रास्ते में हमने अपने घुटन्ना मित्र हंसमुख लाल जी को भी साथ ले लिया । तीये की बैठक पास के पार्क में रखी गई थी । एक किलोमीटर तक गाडियों की पार्किंग हो गई थी । सड़क लगभग जाम हो गई थी फिर भी गाड़ियां आ रही थीं । लोगों का रैला आ रहा था । पार्क खचाखच भर गया था । जगह कम पड़ गई थी । गजब की भीड़ थी । पर एक बात थी कि लोग 50 या इससे अधिक उम्र के ही नजर आ रहे थे । तीये की बैठकों में शायद वे ही लोग जाते हैं जिनका तीया पांचा शीघ्र ही होना है । जवान लोगों को धन कमाने से फुरसत कहां है ? 

ये मृत्यु भी अजीब सी चीज होती है ना ? लोगों को डरा जाती है कि मुझे भूलो मत । एक न एक दिन मुझे आना है । पर लोग हैं कि मानते नहीं । इस तरह जीते हैं जैसे सदियों तक जिंदा रहेंगे । सात पीढीयों की चिंता करते हैं और पता घड़ी भर का नहीं । जब जब भी कोई परिचित स्वर्गवासी होता है तब तब "राम नाम सत्य है , सत्य बोल्यां गत्य है" का उद्घोष होता है और नश्वर शरीर की निरर्थकता का अहसास होता है । मगर शमशान से बाहर निकलते ही लोग "सत्य" को भूल जाते हैं और असत्य में रम जाते हैं । 

जैसा कि आमतौर पर होता है , पंडित गरुड़ पुराण का थोड़ा सा पाठ करता है और शरीर के नश्वर होने तथाआत्मा के अमर होने का पाठ सुनाता है  । यहां पर भी महाभारत का वही श्लोक पढा जा रहा था जो अमूमन सब जगह पढा जाता है 
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। 
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥
सब लोग इसे सैकड़ों बार सुन चुके हैं मगर पंडित हर तीये की बैठक में यह सुनाता है । फिर भी कोई नहीं सुनता है । लोग मोबाइल में "बिजी" रहते हैं । तीये की बैठक में भी मोबाइल बजते रहते हैं । शायद लोग समझते हैं कि सन्नाटे को देखकर कहीं सन्नाटा उन पर हावी ना हो जाये, इसलिए मोबाइल की घंटी चालू रखते हैं । बेचारी आत्मा ! वह अब बची कहां है ? वह तो कब की मर चुकी है । 

तीये की बैठक में भी बड़ी अजीब अजीब बातें होती हैं । एक सज्जन शेयर बाजार के खिलाड़ी थे शायद । लगातार फोन पर कुछ शेयर खरीदने के लिए ऑर्डर दे रहे थे । मैंने कहा भाईसाहब, तीये की बैठक तो कभी और रखवा लेंगे, आप तो अपना धंधा करते रहो । वह खीसें निपोर कर रह गये । 

इतने में पंडित शोक संदेश पढने लग गया । सांसद, विधायक, पार्षद से लेकर बलॉक प्रमुख, गली प्रमुख, पन्ना प्रमुख, हारे हुए प्रत्याशी सभी ने शोक संदेश भेजे थे । आज शोक संदेशों को सुनकर पता चला कि शहर में कितने अग्रवाल समाज हैं और उनके पदाधिकारी कौन कौन हैं ? इनके अलावा लायन्स क्लब, स्वयं सेवी संगठन, अनाथालय, वृद्धाश्रम, नारी निकेतन, विकलांग संस्थान, कला संगठनों के यहां से भी शोक संदेश आये थे । लगता है कि लाला छदामीलाल इन सभी संस्थाओं को थोड़ा बहुत चंदा दिया करते थे या चंदे का आश्वासन, तभी तो इतने शोक संदेश आ गये । आज उन्होंने शोक संदेश भेजकर अपना ऋण चुका दिया या चंदे की अगली किस्त पुख्ता कर ली थी । अगर ऐसा नहीं होता तो कुछ दिनों पूर्व एक और पड़ोसी के तीये की बैठक में तो बस दो चार शोक संदेश ही आये थे । लोग इसमें भी भेदभाव करते हैं , गजब है । 

तीये की बैठक में जाने का तभी फायदा है जब मुखिया को अपना चेहरा दिख जाये । अगर उन्होंने आपको नहीं देखा तो आपकी हाजिरी कैसे लगेगी ? इसलिए उनकी आंखों में आंखें डालकर अपनी उपस्थिति दर्ज करानी पड़ती है । तीये की बैठक में शामिल होने पर आदमी सोचता है कि एक दिन उसकी भी ऐसी ही तीये की बैठक होगी । ऐसा सोचकर आदमी नर्वस हो जाता है । शायद इसीलिए "तुलसी" बांटी जाती है इस दिन जिससे आदमी में नकारात्मकता से लड़ने की शक्ति आ जाये । 

घर जाने से पहले मंदिर जाना होता है । नकारात्मकता को लेकर घर नहीं जाना चाहिए । इसलिए मंदिर जाना अनिवार्य किया गया है । सारी नकारात्मकता मंदिर में छोड़कर आ जाइये और फिर घर जाइए । घर पर गंगाजल के छींटे डालकर शुद्ध होना पड़ता है । यदि गंगाजी में नहा नहीं सके तो क्या हुआ, गंगाजल के छींटों से ही काम चल जाता है । पाप पुण्य का विचार केवल तीये की बैठक तक ही रहता है उसके बाद तो फिर वही "मतलब की दुकान" । यही जीवन है जो युगों युगों से चला आ रहा है । 

श्री हरि 
31.12.22 


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5 Comments

Varsha_Upadhyay

03-Jan-2023 08:42 PM

बेहतरीन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

04-Jan-2023 08:30 AM

धन्यवाद जी

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Muskan khan

31-Dec-2022 07:14 PM

Nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

01-Jan-2023 09:45 AM

धन्यवाद जी । नव वर्ष पर हार्दिक अभिनंदन

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Hari Shanker Goyal "Hari"

04-Jan-2023 08:30 AM

धन्यवाद जी

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